पूर्व में पास हुए प्रस्तावों में क्या हुआ, बताएं अफसर, हिंदी भवन का मानचित्र क्यों नहीं किया पास
कोरोना और लाॅकडाउन के चलते इस वर्ष में पहली और मेरठ विकास प्राधिकरण बोर्ड की 115वीं बोर्ड बैठक गत दिवस मंडलायुक्त और एमडीए बोर्ड की चेयरमैन अनीता सी मेश्राम व जिलाधिकारी अनिल ढींगरा की उपस्थिति में संपन्न हुई। दिन में 12 बजे शुरू हुई बैठक में अगर देखा जाए तो इससे संबंध खबरे पढ़कर पता चलता है कि विभाग के अफसरों ने अपने हित की कई योजनाओं पर मुहर लगवाई लेकिन आम आदमी के हितों के कई प्रस्तावों को अगली बैठक के लिए टाल दिया। जैसे कि शताब्दी नगर में बनने वाले वीसी आवास की बिक्री अगर होती तो उससे करोड़ो रूपये प्राप्त होते मगर उस पर सहमति नहीं बनी। शताब्दीनगर में ही 800 से ज्यादा संख्या में समाजवादी आवास योजना के अधूरे पड़े फ्लैटों पर कोई सहमति नहीं बनी जबकि यह पूरे कर दिए जाते तो किसी भी योजना के मकान भले ही हो लेकिन पात्र व्यक्तियों को मिल सकते थे। इतना ही नहीं राष्ट्रभाषा हिंदी से संबंधित पटेल नगर स्थित हिंदी भवन समिति द्वारा समाज कल्याण विभाग का मानचित्र आवेदन को भी कुछ संशोधनों के साथ अगली बैठक में रखने की बात हुई। तो पीएम आवास योजना के तहत साढ़े चार लाख रूपये में दिए जाने वाले आवास की कीमत छह लाख रूपये कर दी गई और इसकी भी जिम्मेदारी प्राइवेट बिल्डरों पर डाली गई। सवाल यह उठता है कि आखिर जो मकान पहले से पीएम आवास योजना या समाजवादी आवास योजना में हैं उन्हें पात्र व्यक्तियों को आवंटित किए जाने का काम अभी तक क्यों नहीं किया गया। जबकि सभी जानते हैं कि इसमें जितनी देर लगेगी उतनी जमीन और निर्माण सामग्री की कीमत बढ़ती रहेगी। दूसरी तरफ यह भी चर्चा है कि जो मकान अभी तक पूर्व में प्रधानमंत्री आवास योजना में बनाए गए उनका भी अभी आवंटन नहीं किया गया और किसी को किया गया है तो अभी कब्जा नहीं मिला।
आखिर एमडीए का गठन जिस मूल उददेश्य को लेकर हुआ था उसे वो पूरा क्यों नहीं कर पा रहा। इसका संज्ञान भी उच्चाधिकारियों और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को करना चाहिए। क्योंकि जितना देखने में आ रहा है उसके अनुसार ना तो प्राधिकरण के अधिकारी सुनियोजित विकास और सौंदर्यीकरण को अंजाम दे पा रहे हैं और ना ही सरकार की निर्माण नीति के विपरित हो रहे निर्माणों को रोकने में सफल। अब रही सस्ते आवासों को ना प्राॅफिट नो लाॅस पर देने की बात तो इसमें भी एमडीए के अधिकारी फेल हो रहे हैं। पीएम आवास योजना के मकानों को भी यह देने में सक्षम नजर नहीं आते इसलिए प्राइवेट बिल्डरों को यह योजना देने की बात की जा रही है।
यह बोर्ड की 115वीं बैठक थी। जिसमें नगरायुक्त अरविंद कुमार चैरसिया के अलावा एमडीए के तमाम अधिकारी मौजूद रहे। तथा नामित सदस्य चरण सिंह लिसाड़ी, नैन सिंह तोमर, वर्षा कौशिक आदि की उपस्थिति में किसी के भी द्वारा आयोजकों से यह नहीं पूछा गया कि हिंदी भवन के नक्शे पर चर्चा क्यों नहीं हो रही और गरीबों के लिए समाजवादी आवास योजना के मकानों का मुददा क्यों टाला गया।
होना तो यह चाहिए कि एमडीए के अधिकारियों से पूछा जाए कि अब तक कितने प्रस्ताव पास हुए और उनमें से कितने पूरे हुए। और जो नहीं हो पाए उनके पीछे क्या कारण रहा। विभाग अपने उपर कितना पैसा खर्च कर रहा है और गरीबों के हित पर कितना। प्राधिकरण के गठन से अब तक कितने अवैध निर्माण हुए, उन पर क्या कार्रवाई हुई। जिन पर सील लगाई गई वो किस स्थिति में है। और जो अवैध निर्माणों में बड़े बड़े शोरूम चल रहे हैं उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई तथा जिन अधिकारियेां के कार्यकाल में यह बने उनके खिलाफ क्या किया जा रहा है।
जितनी चर्चा सुनने को मिलती है उसके अनुसार ज्यादातर अवैध निर्माण विभाग के संबंधित अधिकारियों की मेहरबानी से होते हैं और जिन निर्माणों में प्राधिकारियों के कागजों में सील लगी है उनमें शोरूम कैसे चल रहे हैं। कोरोना काल में जो 49 करोड़ रूपये का लाभ दिखाया गया है कि उसकी भी जांच होनी चाहिए क्योंकि यह चर्चा है कि अपने खर्चों के लिए बजट पर मुहर लगवाने की बात को ध्यान में रखते हुए इसमें आंकड़ेबाजी की गई है। मंडलायुक्त जी बताया जाता है कि काफी बड़ी तादात में गरीबों के लिए कई योजनाओं में बने और अधबने मकान पिछले कई साल से पड़े हैं जिन पर काफी बड़ी रकम भी सरकार की खर्च हो चुकी है। लेकिन वो प्राधिकरण के अधिकारियों की उदासीनता के चलते जरूरतमंद व्यक्तियों को नहीं मिल पा रहे हैं।