अमेरिका में नस्लभेद की समस्या कोई नहीं है। आए दिन दुनिया के सबसे ताकतवर देश में अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव होता रहता है। लेकिन पिछले कुछ समय से कोविड-19 महामारी से त्रस्त अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत ने मानों आग में घी डालने का काम किया। लोगों ने वायरस के खतरे की परवाह किए बगैर बड़े-बड़े विरोध प्रदर्शन किए। बावजूद इसके अमेरिकी नेता चीन पर वायरस के प्रसार करने का आरोप लगाने में व्यस्त हैं। शायद चुनावों के मद्देनजर उनके पास कोई और चारा भी नहीं है।
गौरतलब है कि अमेरिका में गोरे पुलिसकर्मी द्वारा अश्वेत व्यक्ति को मारे जाने की वैश्विक स्तर पर निंदा की गयी। बड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भी अमेरिका आदि देशों में नस्लभेद के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में इसके विरोध में आवाज़ उठायी गयी है। कई विशेषज्ञों ने अमेरिका से इस समस्या को हल करने के लिए गंभीरता से काम करने की अपील की है। इतना ही नहीं उन्होंने ट्रंप प्रशासन से सभी तरह के नागरिकों को समान अधिकार दिए जाने के लिए कानूनों में बदलाव करने की भी मांग की है।
इससे पहले अन्य आर्गेनाइज़ेशन भी अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में नस्लभेद के मुद्दे को कई मंचों से उठाते रहे हैं। लेकिन इस बार संयुक्त राष्ट्र में इस समस्या पर चर्चा किया जाना दर्शाता है कि यह समस्या कितनी बड़ी है। अमेरिका विश्व में सबसे शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी से निपटने में अक्षमता हो या नस्लभेद की घटनाओं पर लगाम न कस पाना ये सभी उसे कमज़ोर बना रही हैं। हाल के दिनों में हमने देखा कि किस तरह से विश्व के कई देशों के नागरिकों ने अश्वेत लोगों के समर्थन में रैलियां निकाली, उन्हें बराबरी के अधिकार देने की मांग की।
कहना होगा कि 21वीं सदी में भी अगर हम इन समस्याओं का खात्मा नहीं कर पा रहे हैं तो जरूर कहीं न कहीं सिस्टम में खामियां मौजूद हैं। जिन्हें समय रहते दूर करना होगा, वरना भविष्य में ये घटनाएं और व्यापक रूप ले सकती हैं।